किसी की अदा तो किसी की मुस्कान में जादू होता है,
किसी के संगीत तो किसी के साज में जादू होता है ।
मुसाफिर बंजारे भी सुनकर रूक जाते हैं अक्सर,
जिनके दिल से निकली आवाज में जादू होता है। ।
सच है दोस्तों! कभी-कभी कोई जब मंच पर आता है तो पहले से ही तालियां बजने लगती हैं। लोग मंत्रमुग्ध होकर बस,,,,सुनते ही रहते हैं। और कुछ ऐसे भी होते हैं कि उन्हें हम बस मजबूरी मानकर सुन लेते हैं। पता है ऐसा क्यों होता है ? जबकि हर वक्ता चाहता है कि वो सबसे अच्छा बोले। मित्रों एक अच्छा वक्ता बनना दो मुख्य बातों पर निर्भर करता है- १. प्रतिभा, २. अभ्यास ।
इनमें से दूसरी बात अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि जहां प्रतिभा जन्मजात होती है वहीं अभ्यास के द्वारा प्रतिभा को अर्जित भी किया जा सकता है। एक बात और है कि अभ्यास करके कोई भी प्रतिभावान बन सकता है। तो दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है की अभ्यास वह रास्ता है जिस पर चलकर कोई भी एक अच्छा वक्ता बन सकता है।
अब सवाल यह है कि एक अच्छा वक्ता बनने के लिए हमें किस प्रकार का अभ्यास करना चाहिए। अगर आपको मंच पर बोलने का बिल्कुल भी अभ्यास नहीं है। तब भी आप घबराइए नहीं बस थोड़ी सी हिम्मत और मेहनत आपको उस मुकाम पर पहुंचा देगी कि आप जब भी मंच पर बोलेंगे चारों ओर से तालियों की गूंज सुनाई देगी और लोग आपकी वाह वाह करेंगे।
सबसे पहले आपको अपनी हिचकिचाहट पर नियंत्रण करना होगा। आपको विश्वास करना होगा कि आप निश्चित रूप से अच्छा बोलेंगे। किसी भी अच्छे वक्ता के लिए आत्मविश्वास का होना सबसे जरूरी चीज है।
एक अच्छे वक्ता के लिए दूसरी जरूरी चीज है विषय का ज्ञान। तो साथियों हमें जिस विषय पर बोलना है उसकी पहले थोड़ी सी तैयारी करनी आवश्यक है ताकि हम जो भी बोलें वह सटीक हो।
आत्मविश्वास और विषय के ज्ञान के बल पर आप किसी भी मंच पर बोलने में सक्षम हो सकते हैं। परंतु सिर्फ विषय के ज्ञान पर बोलकर आप लोगों के चहेते वक्ता बन सकें या लोगों की वाहवाही लूट सकें इसमें संदेह है। एक चहेते वक्ता के तुणीर में हमेशा ऐसे तीर होते हैं जो उसे हर हाल में तालियां बटोरने में सक्षम बनाते हैं। और ये तीर होते हैं- शेर- शायरी, चुटकुले, छोटी-छोटी कहानियां और प्रेरक प्रसंग। एक सफल वक्ता अपने सामने बैठी हुई दर्शकों की भीड़ का मनोविज्ञान समझता है कि दर्शक क्या चाहते हैं और वह सदैव उनकी मांग के अनुरूप ही तीर अपने तरकस से निकालता है। उदाहरण के लिए वक्ता के सामने अगर बहु संख्यक दर्शक बुजुर्ग हैं तो वह ईश भक्ति से संबंधित दोहे अथवा प्रसंग सुनाकर प्रशंसा का पात्र बन सकता है। परंतु यदि दर्शक युवा हैं तो इश्क और प्रेम की शायरी या हास्य व्यंग्य के प्रसंग ही उसे अधिक तालियां दिलवा सकते हैं।
इसके पश्चात एक और महत्वपूर्ण चीज है वह है आपके बोलने की शैली। हर व्यक्ति के बोलने की शैली वैसे तो अलग होती है और वही उसकी पहचान होती है परंतु बोलने की शैली का तरीका इस प्रकार का हो कि वह दर्शकों को अपनी बात सरलता से समझा सके तथा प्रसंग के अनुरूप उतार चढ़ाव तथा वाणी के लोच से उनके हृदय तक पहुंच सके।
तो मेरे दोस्त अगर आप एक अच्छा वक्ता बनना चाहते हैं तो आज और अभी से अपने मन में दृढ़ विश्वास कर लें कि मैं एक अच्छा वक्ता हूँ और मैं अच्छा बोलूंगा। बस इस विश्वास के साथ अब तैयार कीजिए वो तूणीर जो हर मंच पर आपको विजयश्री दिलवाएगा अर्थात कुछ अच्छे अच्छे दोहे, कोटेशन, शेर, शायरी, चुटकुले, प्रसंग और छोटी-छोटी कहानियाँ । बस फिर जैसा प्रसंग हो उसके अनुरूप अपने वक्तव्य के बीच बीच में इनको शामिल कीजिए और देखिए जादू कि कैसे लोगों के हाथ खुल जाते हैं तालियां बजाने के लिए।
एक वक्ता बनने के लिए हमें छोटे-छोटे मौकों से शुरुआत करनी चाहिए, मसलन विद्यालय की प्रार्थना सभा, कोई जयन्ती या कोई भी छोटा उत्सव जिसमें केवल विद्यालय परिवार के लोग ही उपस्थित हों। फिर खुद महसूस करेंगे कि कैसे आपका आत्मविश्वास बढने लगता है। और आप स्वतः ही बड़े से बड़े कार्यक्रम में बोलने से भी पीछे नहीं हटेंगे। अगर आप एक सफल वक्ता बनना चाहते हैं और आप शिक्षक या विद्यार्थी हैं तो यकीन मानिए आप से बेहतर मौका इस काम के लिए किसी को मिल भी नहीं सकता। मेरा विश्वास है कि आपके विद्यालय के अगले कार्यक्रम में आप एक वक्ता के रूप में मंच पर खड़े नज़र आएंगे। इस शेर के साथ आपको उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएं,,,,,
"मंजिलें उनको मिलती है जिनके सपनों में जान होती है,
पंखों से कुछ नहीं होता दोस्त हौंसलो से उड़ान होती है। "
( मेरी मेहनत अगर आपके किंचित मात्र भी काम आई तो मैं अपने तुच्छ प्रयास को सार्थक समझूंगा। लेख आपको कैसा लगा। कोई सुझाव या सलाह हो तो कृपया कमेंट बॉक्स में लिखें मुझे हार्दिक प्रसन्नता होगी। )
आपका स्नेहाकांक्षी -
सांवर चौधरी
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आपके संबल हेतु हार्दिक धन्यवाद।