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तरकश भाग 5 : प्रेरक प्रसंग

  साथियों! विद्यालय में शिक्षक और विद्यार्थी सबके लिए प्रेरक प्रसंग का बड़ा महत्व होता है। कभी-कभी तो प्रार्थना सभा/बाल सभा या अन्य आयोजन पर अनायास ही हमारे नाम की उद्घोषणा कर दी जाती है कि आप एक प्रेरक प्रसंग सुनायेंगे,,,,, तो ऐसे में हमारे तरकश में कोई ऐसा तीर होना ही चाहिए जो हमें वहाँ स्थापित कर सके। ऐसा ही एक प्रेरक प्रसंग जो मैने कहीं पढा/सुना है, उस अनाम लेखक को नमन करते हुए आपकी सेवा में पेश कर रहा हूँ। अपनी तुच्छता के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।


कबीर दास जी कहते हैं,,,,

गुरु कुम्हार शिष कुम्भ है, घड़-घड़ काढै खोट।

अंतरि हाथ स्नेह का, बाहिर मारे चोट।।


      एक बार एक राहगीर जो एक प्रसिद्ध मूर्तिकार था कहीं पैदल ही जा रहा था। राह में थक जाने पर एक पेड़ की घनी छाया में बैठ गया। उसने देखा वहाँ दो पत्थर पड़े हैं। जो देखने में अनगढ और बेडोल थे परंतु मूर्तिकार जानता था कि पत्थर मूर्ति बनाने के लिए उत्तम हैं। कलाकार ‌कहां चैन से बैठने वाला होता है। सो उसने अपने थैले से निकाल लिए छैनी हथोड़ा और लगा पत्थर को तराशने।

       पत्थर तो पहली ही चोट से बिलखने लगा मुझे छोड़ दो। मुझे छोड़ दो। मूर्तिकार ने उसे प्यार से समझाया बस,,, कुछ देर की बात है। तुम अगर ये चोट सहन कर लोगे तो मैं तुम्हें ऐसा बना दूंगा कि दुनिया पूजेगी। पर पत्थर कहां मानने वाला था वो चिल्लाने लगा, बार बार मूर्तिकार के हाथों से छिटकने लगा। अन्ततः मूर्तिकार ने उस पत्थर को छोड़ दिया और दूसरा पत्थर उठा लिया। तकलीफ तो शायद दूसरे पत्थर को भी हो रही होगी पर वो ना चीखा, ना चिल्लाया,,, बस शान्ति से छैनी की मार सहता रहा। कुछ ही देर में दूसरा पत्थर एक बहुत ही सुन्दर मूर्ति का रूप ले चुका था। मूर्तिकार ने उस मूर्ति को पेड़ के तने के पास स्थापित किया और अपने मार्ग पर चल दिया। 

       संयोग से कुछ समय बाद उस मूर्तिकार का उसी राह से आना हुआ । तो उसी पेड़ के पास लोगों की भीड़ देखकर वह उत्सुकता से देखने लगा। पूछने पर पता चला कि यहाँ कोई चमत्कारी मूर्ति है और सब लोग उसकी ही पूजा अर्चना कर रहे हैं। मूर्तिकार को याद आ गया कि ये उसी की बनाई मूर्ति है। खुद की कलाकृति के इस महान उत्कर्ष को देखकर मूर्तिकार को अपार हर्ष हुआ।

       अब मूर्तिकार को याद आया वो पहला पत्थर जो अपनी नादानी के कारण एक अच्छी मूर्ति बनने का सुअवसर गंवा चुका था। उसकी नजरें उस पत्थर को ढूंढने लगी। बरबस ही उसकी नजरें ठिठक गयी एक अनगढ बेडोल पत्थर को देखकर, जिस पर लोग नारियल फोड़ रहे थे।

       तो दोस्तों इसी तरह जो लोग अपने गुरु, माता-पिता या बुजुर्गों की डांट-फटकार को सहर्ष स्वीकार कर मेहनत करते हैं वही इस दुनियां में महान बनकर पूजे जाते हैं। और जो ये नहीं कर पाते उनके सिर पर ही असफलता के नारियल फोड़े जाते हैं।


(दोस्तों! पोस्ट आपको कैसी लगी,,, कृपया कमेंट कर अवश्य बताएं। )

                                                 आपका स्नेहाकांक्षी-

                                                     ✍   सांवर चौधरी

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