अब क्या मायने रखता है कि असल में कौन कैसा है।
तुमने जिसके लिए जो सोच बना ली वो बस,वैसा है।।
एक बार की बात है। हमारे साल्ट लेक डीडवाना में प्रादेशिक चींटी सम्मेलन का आयोजन हुआ। राजस्थान के कोने कोने से चींटियों के दल डीडवाना पधारे। डीडवाना की चींटियों ने उनकी खूब आवभगत की और उन्हें खाने में नमक परोसा। क्योंकि डीडवाना की चींटियां नमक की झील में रहने के कारण नमक ही खाती हैं और उन्हें लगता है कि इस से स्वादिष्ट भोजन कुछ हो भी नहीं सकता । आगन्तुक चींटियों ने मेजबान चींटियों द्वारा की गई व्यवस्थाओं की प्रशंसा करते हुए उनके भोजन को भी अच्छा और स्वादिष्ट बताया।
अगली बार का आयोजन गंगानगर शुगर मिल के पास रखा गया। सो राजस्थान के कोने कोने से चीटियों के दल गंगानगर शुगर मिल के लिए रवाना हुए। डीडवाना का दल जब गंगानगर के लिए प्रस्थान करने लगा तो एक बुजुर्ग चिंटे ने कहा कि हमें रास्ते में खाने के लिए भोजन साथ ले चलना चाहिए। उनके पास तो भोजन के नाम पर वही नमक के टुकड़े थे। अब चीटियों के पास भोजन ले जाने के लिए कोई टिफिन बॉक्स तो होते नहीं है सो उन्होंने एक एक नमक का टुकड़ा अपने मुंह में दबाया और चल दिए।
गंगानगर पहुंचने पर सभी चीटियों का भव्य स्वागत हुआ और उन्हें भोजन के रूप में शक्कर के दाने परोसे गए। सभी जिलों की चीटियों ने गंगानगर की चीटियों द्वारा परोसे गए भोजन अर्थात शक्कर की खूब प्रशंसा की। कुछ ने तो यहां तक कहा कि ऐसा मीठा और स्वादिष्ट भोजन उन्होंने अपने जीवन में पहली बार किया है। जब सभी चीटियां भोजन की प्रशंसा कर रही थी तब डीडवाना की चीटियों का दल खामोश था।
उनकी खामोशी को देखकर गंगानगर के एक बुजुर्ग चिंटे ने पूछा क्यों भाई डीडवाना वालों ! क्या आपको हमारा भोजन पसंद नहीं आया ? तो डीडवाना दल के मुखिया ने कहा आप का भोजन भी अच्छा है परंतु जिस प्रकार सब लोग तारीफ कर रहे हैं कि इस प्रकार का मीठा भोजन उन्होंने कभी नहीं किया यह बात हमें तो हजम नहीं हो रही है। क्योंकि हमें डीडवाना के नमक और आपके भोजन में जरा भी अंतर नहीं लग रहा है।
यह सुनकर गंगानगर की चीटियां कहने लगे कि यह कैसी बात कर रहे हैं नमक और शक्कर के स्वाद में तो जमीन आसमान का फर्क होता है। परंतु वह बुजुर्ग चिंटा माजरा समझ चुका था उसने डीडवाना की चीटियों से निवेदन किया कि पहले आप लोग कुल्ला करके आएं उसके बाद भोजन करें । डीडवाना की चिंटियों ने ऐसा ही किया और कुल्ला करने के बाद जब उन्होंने शक्कर का दाना मुंह में लिया तो वे बोल पड़े अरे वाह! अद्भुत !! अलौकिक !! इतना मिठास हमने जीवन में कभी नहीं चखा होगा। वास्तव में हुआ यह था कि उनके मुंह में पहले से नमक के टुकड़े रखे हुए थे उनके कारण उन्हें शक्कर का मिठास भी नहीं मिल पा रहा था।
तो साथियों इसी प्रकार हम लोग भी बहुत सारे पूर्वाग्रहों से ग्रसित होते हैं । मानसिक धारणाओं से बंधे होते हैं। इसलिए हम सच्चाई और अच्छाई का आकलन इमानदारी से नहीं कर पाते । तो अगर हमें वास्तविकता को देखना है तो हमें विचारों का कुल्ला करना होगा अर्थात अपने आप को निरपेक्ष बनाना होगा तभी हम सच्चाई और अच्छाई को देख सकेंगे, उसे जान सकेंगे और उसे रूबरू हो सकेंगे।
जरूरी नहीं कि हर बार धूल आईने पर ही लगी हो,,,
कभी कभी अपना चेहरा भी साफ कर लेना चाहिए,,,
(कहानी आपको कैसी लगी कृपया कमेंट करके अवश्य बताएं )
आपका स्नेहाकांक्षी -
सांवर चौधरी
बहुत खूब गुरुजी
जवाब देंहटाएंक्या बात लिखी हैं, आपने!
👌👌👌👌👌
धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंShandaar 👌👌👌
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
हटाएंवाह सर आप वाकई में ऐक सफल वक्ता हैं।इस कहानी के जरिय आपने समाज में ऐक अच्छा संदेश दिया है।
जवाब देंहटाएंग़ज़ब
जवाब देंहटाएंBahut khub likha h sir ji
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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जवाब देंहटाएंबेशक जीवन में हमें ऐसे ही दृष्टांत के जरिए अपने पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर जीवन की आधारशिला को मजबूत करना चाहिए.....
साधुवाद
Bhut hi shandar mja aa gya
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर .... भर्मित व पूर्वाग्रह से ग्रसित व्यक्ति सच्चाई से दूर रहता है इसलिए दुनियाँ अच्छी नहीं लगती है
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