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तरकश भाग 2 : कौए जैसे पंच

 नाकाबिल भी अब देखो यहाँ सिर उठाते हैं,

काबिल महफिलों में दरी चादर बिछाते हैं।

तेरे शहर में तो अर्थी को भी कांधा नहीं मिलता,

मेरे‌ गाँव में लोग छप्पर भी मिलकर उठाते हैं। ।


       तो साथियों एक था हंस और एक थी हंसिनी। मानसरोवर में बड़े प्रेम से रहते, मोती चुगते और हर पल आनंद क्रिड़ा में मग्न रहते। एक दिन हंसिनी के मन में दुनिया देखने का ख्याल मरोड़ मारने लगा। सो सवेरे उड़ चले हंस और हंसिनी,,,दुनिया देखने। कश्मीर की वादियां देखी, दिल्ली की भीड़ देखी, कच्छ का रन देखा विशाल समुद्र, ऊंचे पर्वत और न जाने क्या क्या देखा। और अन्त में देवयोग से आ पहुंचे मरूधरा के निर्जन‌ रेगिस्तान में ।

दूर दूर तक रेत के धोरे, तपती लू के थपेड़े। न छाया का कहीं नाम न पानी का कहीं निशान। मगर संध्या हो चुकी थी अतः हंस ने हंसिनी को समझाया कि जैसे तैसे यहाँ रात गुजार लेते हैं, प्रभात की पहली किरण के साथ ही हम मानसरोवर लौट चलेंगे।

      सो रात बिताने को हंस और हंसिनी एक सूखे से बबूल के पेड़ के नीचे बैठ गये। और जैसे तैसे सवेरे का इंतजार करने लगे। मध्य रात्रि के समय एक उल्लू उस बबूल पर आकर बैठा और जोर-जोर से अपनी कर्कश वाणी से बोलने लगा। उस उल्लू को संकेत करते हुए हंसिनी बोली "हे स्वामी अब मुझे समझ में आया है कि यह प्रदेश इतना वीरान क्यों है | जहां उल्लू जैसे पक्षी रहते हो वह प्रदेश वीरान नहीं तो और क्या होगा।" हंस ने भी हंसिनी की हां में हां मिलाते हुए कहा-


एक ही उल्लू काफी था बर्बाद ए गुलिस्तां करने को,

हर शाख पर उल्लू बैठा हो तो हाल ए गुलिस्तां क्या होगा


 उनकी की बात सुनकर उल्लू कुछ नहीं बोला। जैसे तैसे रात बीत गई और सवेरा हो गया।

       सुबह जब हंस अपनी हंसिनी को साथ लेकर चलने लगा तो उल्लू ने पीछे से आवाज लगाई अरे हंस ठहरो तुम मेरी पत्नी को लेकर कहां जा रहे हो? हंस चौका । तुम्हारी पत्नी? अरे यह तो हंसिनी है मेरी पत्नी। परंतु उल्लू अपनी बात पर अड़ा रहा और बोला यह हंसिनी तुम्हारी पत्नी नहीं मेरी पत्नी है और मैं इसे तुम्हारे साथ नहीं जाने दूंगा। हंस और उल्लू की बहस सुनकर दूसरे पक्षी भी इकट्ठे हो गए। जब बात बढ़ गई तो कुछ समझदार पक्षी बोले क्यों ना पक्षियों की पंचायत बुलाकर इस बात का फैसला करवा लिया जाए कि हंसिनी किसकी पत्नी है।

       खैर इस तरह पक्षियों की पंचायत बैठ गई। पंचों के बीच विचार विमर्श होने लगा। अंत में पक्षियों का सरपंच कौआ दबी जुबान में पंचों से बोला कि हम सब जानते हैं कि वास्तव में हंसिनी हंस की पत्नी ही है। परंतु यह हंस तो परदेसी है जो अभी चला जाएगा। हमें हमेशा इस उल्लू के साथ ही रहना है इसलिए फैसला तो इसके पक्ष में ही देना पड़ेगा। और इस तरह पक्षी पंचों की सर्वसम्मति से कोए सरपंच ने अपना फैसला सुनाया कि वास्तव में हंसिनी उल्लू की पत्नी है । इसलिए हंसिनी को उल्लू के साथ ही रहना पड़ेगा तथा हंस को तत्काल यह प्रदेश छोड़कर चले जाना चाहिए।

       अब बेचारा हंस क्या करता,,,, वह रोते-रोते वहां से चलने लगा। तो पीछे से उल्लू ने आवाज लगाई अरे हंस जरा ठहरो। हंस ने कहा भाई मेरी पत्नी को तुमने छीन लिया अब तुम मुझसे और क्या चाहते हो। तब उल्लू बोला कि हंसिनी तुम्हारी ही पत्नी है, इसे तुम अपने साथ ले जाओ। मैं तो बस तुम्हें रात की उस बात का जवाब दे रहा था । अब समझ में आया होगा कि यह प्रदेश इसलिए वीरान नहीं है कि यहां उल्लू रहता है बल्कि इसलिए वीरान है कि यहां कोए जैसे पंच रहते हैं। जो हर हाल में फैसला उल्लुओं के पक्ष में सुनते हैं।


पक्षी कहते हैं चमन बदल गया,

तारे कहते हैं गगन बदल गया।

मगर कहती है शमशान की खामोशी,

लाश वही है सिर्फ कफ़न बदल गया।।


(दोस्तों मंच पर जब किसी कार्यक्रम के बीच कोई अंतराल या गैप आता है तब इस प्रकार की छोटी कहानी का प्रयोग श्रोताओं को बांध कर रखने के लिए किया जा सकता है। परंतु यह कहानी राजनीतिक अकर्मण्यता पर तीखा व्यंग है अतः ऐसी कहानी का प्रयोग प्रसंग के अनुसार सोच समझकर ही किया जाना चाहिए। पोस्ट आपको कैसी लगी कृपया कमेंट कर बताएं।)

                                      आपका स्नेहाकांक्षी -

                                            ✍ सांवर चौधरी


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