सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

बालसभा : आनंद की एक फुहार

 "ना रोने की कोई वजह थी, ना हंसने का कोई बहाना था |

क्यों हो गए हम इतने बड़े इससे अच्छा तो वो बचपन का जमाना था,,,,"

       जी हां दोस्तों बाल सभा का नाम सुनते ही याद आ जाते हैं वे बचपन के जमाने जहां, हर शनिवार के अंतिम कुछ कालांश इतने आनंद में गुजरते कि हफ्ते भर की सारी गंभीरता, सारी थकान, सारी टेंशन बरबस ही गायब हो जाती।

       कोरोना काल को छोड़कर बात करें तो पिछले कुछ वर्षो में राज्य सरकार और शिक्षा विभाग इस विषय पर बड़ा संजीदा दिखाई देता है। बालसभा को बाकायदा विशेष उत्सव के रूप में विद्यालय में/ सार्वजनिक स्थान पर/ गांव के चौपाल पर मनाए जाने के आदेश भी निदेशालय स्तर से प्रसारित किए गए। जिनकी सक्षम अधिकारियों से मॉनिटरिंग भी करवाई गई।

       अब किसी ने इसका आयोजन मजबूरी मानकर महज खानापूर्ति के रूप में किया तो किसी ने एक अवसर मानकर बालसभा के इस उत्सव को महोत्सव में बदल दिया।

       तो आइए हम उन बातों पर विचार करें जिससे आपके विद्यालय की अगली बालसभा भी महोत्सव बन जाए और अगले दिन लोग आपकी मेहनत की तारीफ करते नजर आएं।

       ∆  सबसे महत्वपूर्ण बात बालसभा की तैयारियां इस बात पर निर्भर करेंगी कि बाल सभा का आयोजन कहां किया जाना है और विद्यालय परिवार के अलावा कौन-कौन लोग उपस्थित होने वाले हैं।

        ∆ यदि सिर्फ विद्यालय परिवार के बीच ही होने वाली है तो सामान्य तैयारियों से भी काम चलाया जा सकता है परंतु यदि बालसभा गांव के चौपाल आदि सार्वजनिक स्थान पर होने जा रही है जहां गांव-समाज के लोग उपस्थित हैं तो दोस्तों हमें अपना दमखम दिखाना ही होगा। और तब हमें-

        ∆ बाल सभा के निर्धारित दिन से पूर्व उपयुक्त स्थान का चयन, छाया, पानी और बैठक व्यवस्था पर विशेष ध्यान देना होगा।

        ∆ कुछ दिन पूर्व ही विद्यालय प्रबंध समिति के सदस्यों, सरपंच, पंच आदि जनप्रतिनिधियों तथा गांव के गणमान्य नागरिकों को आमंत्रित करते हुए हर प्रकार से इस आयोजन की सूचना का प्रचार प्रसार करना होगा ताकि दर्शकों की संख्या अधिकतम हो सके। हमारी मेहनत का फल दर्शकों की संख्या पर अधिक निर्भर करेगा।

        ∆ निर्धारित समय पर कार्यक्रम प्रारंभ करने से पूर्व विद्यार्थियों में से लोकतांत्रिक ढंग से एक अध्यक्ष का चुनाव करें और उसे मंच पर आसीन करें। (इस हेतु विद्यार्थियों को पूर्व में निर्देशित कर इस प्रकार की व्यवस्था कर लें कि वहां आपको अधिक समय ना लगे तथा किसी प्रकार की हास्यास्पद स्थिति का सामना ना करना पड़े)

         ∆ अब सरपंच, पंच आदि गणमान्य या जनप्रतिनिधियों को मंच पर आसन ग्रहण करावें। मंच संचालक इस कार्यक्रम की उपयोगिता और उद्देश्यों के बारे में बताएं तत्पश्चात सरस्वती पूजन सरस्वती वंदना इत्यादि से बाल सभा का शुभारंभ करावे।

        ∆ क्योंकि बालसभा विद्यार्थियों का कार्यक्रम है अतः प्रस्तुति का मौका अधिकतम विद्यार्थियों को प्रदान किया जाना चाहिए। इस हेतु प्रत्येक कक्षा से बारी बारी एक एक विद्यार्थी को प्रस्तुति के लिए मंच पर बुलाते रहें। प्रस्तुति देने वाले विद्यार्थियों की रिहर्सल तथा सूची बालसभा से 1 दिन पूर्व ही भली प्रकार तैयार कर लेनी चाहिए। इस संबंध में विशेष ध्यान देने योग्य बात यह है कि प्रत्येक बालक की प्रस्तुति मंच की गरिमा को ध्यान में रखते हुए कक्षा की सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुति हो।

       ∆ प्रत्येक प्रस्तुति के बीच समय-समय पर मंच संचालक द्वारा अपने विद्यालय की उपलब्धियों, सरकारी योजनाओं, छात्र कल्याण आदि की संक्षिप्त और सारगर्भित जानकारी दी जानी चाहिए। इस हेतु एक एक बिंदु पर संक्षिप्त जानकारी हेतु शिक्षकों को भी आमंत्रित किया जा सकता है। 

       ∆ विद्यार्थियों की प्रस्तुति पर प्रशंसा करना तथा तालियां बजवाना ना भूलें। यही वो मोटिवेशन है जो विद्यार्थी को भविष्य में मंच पर आने के लिए प्रेरित करता रहेगा।

       ∆ विद्यार्थियों की प्रस्तुतियों के पश्चात संस्था प्रधान का उद्बोधन अवश्य रखें जिसमें विद्यालय की विशिष्ट उपलब्धियों तथा नामांकन, परीक्षा परिणाम आदि का सारगर्भित जिक्र हो।

       ∆ आगंतुक मेहमानों में से किसी गणमान्य नागरिक, जनप्रतिनिधि आदि से आशीर्वचन दिलवाना। किसी विद्यालय के प्रति सकारात्मक सोच रखने वाले अभिभावक से विचार प्रकट करवाना भी विद्यालय हित में रहेगा। उद्बोधन की अंतिम कड़ी के रूप में निर्वाचित छात्र अध्यक्ष से भी अपना वक्तव्य दिलवाएं। इस हेतु छात्र को पूर्व में तैयार किया जाना आवश्यक है।

       ∆ अंत में बाल सभा में प्रस्तुति देने वाले विद्यार्थियों को गणमान्य नागरिकों के हाथों पुरस्कार प्रदान करवाए जाने चाहिए।

            साथियों पिछले लगभग 20 वर्षों से शिक्षक के रूप में कार्य करते हुए मेरे अनुभव के आधार पर मैंने इस आयोजन को सफल बनाने हेतु अपने विचार रखे हैं। हो सकता है आपकी प्रतिभा और विचार इससे अलग हो परंतु मैं उनका सम्मान करते हुए अपने इस तुच्छ प्रयास की खामियों हेतु आपका क्षमा प्रार्थी हूं। इस संबंध में आपके कोई सुझाव, सवाल या शंका हो तो आप कमेंट बॉक्स में अवश्य बताएं।

"किसी की कमियाँ निकालना जितना आसान है उतना ही कठिन है किसी की प्रशंसा करना।"

                                आपका स्नेहाकांक्षी -                                                                      ✍सांवर चौधरी

        

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पहली बार मंच संचालन : एक बेहतरीन शुरूआत

  हर कोई सीखता है दुनिया में आकर, यहां से कोई खाली हाथ नहीं जाता । हैं गलत हम ,तो बता दो कोई फन जो इंसान मां के पेट से सीख कर आता ।।         मेरे दोस्त! अगर आपने आज तक कभी मंच संचालन नहीं किया और आपके मन के किसी कोने में एक पुरानी इच्छा सोई हुई है कि काश मैं भी कभी मंच संचालन कर पाता ,,,,, तो यकीन मानिए कि आज इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आपके विद्यालय का इस बार का गणतंत्र दिवस आपके जीवन में उस दम तोड़ रही इच्छा को पूरा करने का स्वर्णिम अवसर लेकर आएगा। निश्चित रूप से इस बार गणतंत्र दिवस कार्यक्रम के उद्घोषक सिर्फ और सिर्फ आप होंगे। मेरा यह वादा महज शब्द जाल नहीं इस बात का यकीन आपको इस लेख को पूरा पढ़ते पढ़ते हो जाएगा। और हां, मैं सिर्फ आपकी हिम्मत को जगा कर आप को स्टेज पर ही खड़ा नहीं करूंगा बल्कि कार्यक्रम के प्रारंभ से लेकर कार्यक्रम के समापन तक आपका साथ दूंगा।        तो दोस्त सबसे पहला काम आपका यही रहेगा कि आप आज और अभी से आने वाले गणतंत्र दिवस के मंच संचालन की तैयारी शुरू कर दें। इस तैयारी के साथ साथ आप अपने मन में यह विश्वास जगाए कि निश्चित रूप से आप बहुत अच्छा मंच संचालन करेंगे। आने व

तरकश भाग 1 : मंच की शायरी

  उड़ूं अंबर में चिड़ियों सा चहक जाऊं, खिलूं गुल सा चमन में, खुशबू सा महक जाऊं । कुहासे सारे संशय के, मेरे मन से हटा देना मेरी मैया शारदे मां मुझे अपना बना लेना।। क्या लेकर आए हो, क्या लेकर जाना‌ है, हमें तो सांसो का कर्ज चुकाना है। बनाने वाले बनाते रहें कोठी बंगले, हमें तो दिलों में घर बनाना है। सितारों को आंखों में महफूज रख ले ए मुसाफिर, आगे रात ही रात होगी। तुम भी मुसाफिर, हम भी मुसाफिर, फिर किसी मोड़ पर मुलाकात होगी ।। टैंक आगे बढ़ें या पीछे हटें,  कोख धरती की बांझ होती है। फतह का जश्न हो या हार का शोक,  जिन्दगी मय्यतों पर रोती है। । पक्षी कहते हैं चमन बदल गया, तारे कहते हैं गगन बदल गया। मगर कहती है शमशान की खामोशी, लाश वही है सिर्फ कफन बदल गया ।। इस बस्ती से अलग, जमाने से जुदा कह दें, अजब कहें, अजीम कहें, अलहदा कह दें। आपकी रहनुमाई के किस्से इतने मकबूल हैं, कि हमारा बस चले तो आपको खुदा कहदें ।। मुश्किलें दिल के इरादे आजमाती हैं, स्वप्न के पर्दे निगाहों से हटाती हैं। हौसला मत हार गिरकर ओ मुसाफिर, ठोकरें इंसान को चलना सिखाती हैं।। मैं तो अकेला ही चला था मंजिल की ओर। राह में लोग जुड़

तरकश भाग 4 : कुल्ला करके आओ

  अब क्या मायने रखता है कि असल में कौन कैसा है। तुमने‌ जिसके लिए जो सोच बना ली वो बस,वैसा है।।         एक बार की बात है। हमारे साल्ट लेक डीडवाना में प्रादेशिक चींटी सम्मेलन का आयोजन हुआ। राजस्थान के कोने कोने से चींटियों के दल डीडवाना पधारे। डीडवाना की चींटियों ने उनकी खूब आवभगत की और उन्हें खाने में नमक परोसा। क्योंकि डीडवाना की चींटियां नमक की झील में रहने के कारण नमक ही खाती हैं और उन्हें‌ लगता है कि इस से स्वादिष्ट भोजन कुछ हो भी नहीं सकता । आगन्तुक चींटियों ने मेजबान चींटियों द्वारा की गई व्यवस्थाओं की प्रशंसा करते हुए उनके भोजन को भी अच्छा और स्वादिष्ट बताया।        अगली बार का आयोजन गंगानगर शुगर मिल के पास रखा गया। सो राजस्थान के कोने कोने से चीटियों के दल गंगानगर शुगर मिल के लिए रवाना हुए। डीडवाना का दल जब गंगानगर के लिए प्रस्थान करने लगा तो एक बुजुर्ग चिंटे ने कहा कि हमें रास्ते में खाने के लिए भोजन साथ ले चलना चाहिए। उनके पास तो भोजन के नाम पर वही नमक के टुकड़े थे। अब चीटियों के पास भोजन ले जाने के लिए कोई टिफिन बॉक्स तो होते नहीं है सो उन्होंने एक एक नमक का टुकड़ा अपने मुंह