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गुरू महिमा पर भाषण/ निबंध

  गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुः गुरूर्देवो महेश्वरः। गुरू साक्षात् परंब्रह्म तस्मै श्री गुरूवे नमः॥ ध्याम मूलं गुरुर मूर्ति, पूजा मूलं गुरु पदम्। मन्त्र मूलं गुरुर वाक्यं मोक्ष मूलं गुरु कृपा॥ अखंड मंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरम। तत पदम् दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः।।           प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान सर्वोपरि माना गया है । वास्तव में मनुष्य इस जगत में अपने अवतरण के लिए जिस प्रकार माता-पिता का ऋणी है, उसी प्रकार सच्चे अर्थों में मनुष्य बनाने के लिए गुरु का ऋणी होता है। मनुष्य योनि में जन्म लेने मात्र से ही किसी में मनुष्यता का विकास नहीं हो जाता है बल्कि एक-एक दोष को दूर करते हुए गुरु ही उसमें मनुष्यता का वटवृक्ष विकसित करता है। कबीरदास जी कहते हैं कि- गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि गढ़ि काढ़ै खोट। अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट॥                गुरु की डांट फटकार भी उनके स्नेह का ही प्रतिफल है कि वे हमारे अंदर के हर छोटे-बड़े दोष को दूर कर हमें सच्चे अर्थों में मनुष्य बनाना चाहते हैं । एक पिता और दूसरा गुरु ही है जो आपको खुद से भी अधिक सामर्थ्यवान
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अनमोल वचन

    प्रसन्न चित्त बनो, प्रश्न चिह्न नहीं ।। प्रणाम मित्रों!              कहा जाता है कि विद्यालय की दीवारें भी उसके चरित्र का आईना होती हैं। सच भी है अक्सर प्रत्येक विद्यालय में दीवारों पर इस प्रकार के अनमोल वचन, महापुरुषों के कथन, लोक में प्रचलित उक्तियां आदि लिखे हुए देखने को मिलते हैं जो एक ओर विद्यालय के चरित्र का प्रतिबिंब प्रस्तुत करते हैं, वहीं दूसरी ओर जाने-अनजाने में विद्यार्थियों को उत्तम संस्कार प्रदान करते हैं।           आज के इस लेख में मैं ऐसे ही कुछ वाक्य लेकर आया हूं जो किसी भी विद्यालय की दीवारों पर स्थान पाकर उसकी कीर्ति में श्री वृद्धि करेंगे। यह संकलन कुछ विद्वान मित्रों के सहयोग से किया गया है जिसमें महापुरुषों के मुख से निःसृत अनमोल वचन, महान ग्रंथों से उद्धृत प्रेरक कथन तथा जनमानस में प्रचलित उक्तियां को स्थान दिया गया है। आशा करता हूं कि यह तुच्छ सा प्रयास किसी शिक्षा मंदिर की शोभा बन कर मुझे अभिभूत करेगा। जीवन का आधार है शिक्षा, बच्चों का अधिकार है शिक्षा। शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है। शिक्षा वह नींव है जिस पर हम अपने भविष्य का निर्माण करते

ईश वंदना : प्रार्थना सभा की शोभा

  दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय। जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय।।         प्रिय साथियों प्रणाम !  प्रार्थना सभा  विद्यालय में हमारे दिन का शुभारंभ है। प्रभावी प्रार्थना सभा न केवल विद्यार्थियों  बल्कि शिक्षकों के मन को भी शांत, एकाग्र चित् और प्रसन्न बना देती है। और जब दिन की शुरुआत ऐसी हो तो निस्संदेह हमारा पूरा दिन बड़ा शानदार गुजरता है और हम मनोयोग से अपने कार्य को एन्जोय करते हैं। प्रार्थना सभा में सरस्वती वंदना के पश्चात ईश वंदना का विशेष महत्व है। हम जगत् के पालक ईश्वर से समस्त सृष्टि के लिए दया की कामना करते हुए स्वयं दयामय हो जाते हैं। इसी प्रयोजन से इस पोस्ट में मैने बहुत अच्छी पांच ईश वंदनाएं संकलित की हैं जिनको आप अपने विद्यालय की प्रार्थना सभा में स्थान देकर उसकी श्री वृद्धि कर सकते हैं । आशा करता हूँ मेरा ये तुच्छ प्रयास आपकी कृपादृष्टि प्राप्त करेगा। मिलता है सच्चा सुख,,,, (ईश वंदना-1) मिलता है सच्चा सुख केवल भगवान तुम्हारे चरणों में -२ यह विनती हर पल भगवन रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में मिलता है सच्चा सुख,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, चाहे

सरस्वती वंदना : प्रार्थना सभा की शान

या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेणसंस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ वीणा पाणी मां शारदा के श्री चरणों में बारंबार प्रणाम !           साथियों ! प्रार्थना सभा हर विद्यालय की शान होती है। वास्तव में प्रार्थना सभा किसी भी विद्यालय के संपूर्ण चरित्र का दर्पण के समान प्रतिनिधित्व करती है। प्रार्थना सभा सरस्वती वंदना, ईश वंदना, प्रेरणा गीत, प्रेरक प्रसंग, सुविचार, समाचार वाचन आदि गतिविधियों का ऐसा समागम होता है जहां न केवल विद्यालय परिवार के सभी सदस्यों के दिन की एक बेहतरीन शुरुआत होती है बल्कि विद्यार्थियों को आगे आकर अपनी प्रतिभा को बहुमुखी आयाम देने का सबसे उत्तम विकल्प भी होती है।         किसी भी विद्यालय की प्रार्थना सभा को श्रेष्ठ रूप देने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है सुंदर सरस्वती वंदना। अक्सर देखने में आता है कि अधिकांश विद्यालयों में चुनिंदा छात्राओं द्वारा प्रतिदिन एक ही सरस्वती वंदना प्रस्तुत की जाती है। यदि हम अपने विद्यालय में सरस्वती वंदना के लिए छात्र और छात्राओं के चार-पांच दल बनाकर उनसे प्रतिदिन अलग-अलग सरस्वती वंदना की प्रस्तुति दिलवाए तो निसंदेह हमारी प्रार्थना सभा

अंदाज-ए-बयां

  किसी की अदा‌ किसी की मुस्कान ‌में जादू होता है, किसी के संगीत तो किसी के साज में ‌जादू होता है । मुसाफिर बंजारे भी सुनकर रूक जाते हैं अक्सर, जिनके दिल से निकली‌ आवाज में जादू होता है। । एक,,,,,               वर्ष 2001,,,,गोवर्नमेंट बांगड़ कॉलेज डीडवाना के असेम्बली हाल में एन.एस.एस. (राष्ट्रीय सेवा योजना) की बैठक प्राचार्य जी की अध्यक्षता में चल रही है। प्राचार्य जी (माफी चाहूँगा उस गुणग्राही सज्जन पुरूष सरदार जी का नाम स्मृति में नहीं रहा) ने घोषणा की - " आज सभी स्वयंसेवक कॉलेज की एक-एक समस्या बताएंगे। और हां एक समस्या/कमी तो हर एक को बतानी ही होगी। "  अब प्राचार्य जी के आदेश की पालना में क्रमशः बारी बारी स्वयं सेवक खड़े होकर समस्या बता रहे हैं । एक- "सर कॉलेज के बगीचे का सुधार होना चाहिए।" दो- "सर पेयजल के कुछ नल टूटे/खराब हैं।" तीन- "सर कॉलेज परिसर में पेड़ और अधिक होने चाहिए।"          इसी प्रकार चार,पांच,छः,,,,,,कुछ उन्ही बातों का दोराहन कर रहे हैं तो कुछ नयी समस्याएं गिना रहे हैं। प्राचार्य जी सभी समस्याओं को ध्यान पूर्वक सुन रहे हैं, जो उ

पहली बार मंच संचालन : एक बेहतरीन शुरूआत

  हर कोई सीखता है दुनिया में आकर, यहां से कोई खाली हाथ नहीं जाता । हैं गलत हम ,तो बता दो कोई फन जो इंसान मां के पेट से सीख कर आता ।।         मेरे दोस्त! अगर आपने आज तक कभी मंच संचालन नहीं किया और आपके मन के किसी कोने में एक पुरानी इच्छा सोई हुई है कि काश मैं भी कभी मंच संचालन कर पाता ,,,,, तो यकीन मानिए कि आज इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आपके विद्यालय का इस बार का गणतंत्र दिवस आपके जीवन में उस दम तोड़ रही इच्छा को पूरा करने का स्वर्णिम अवसर लेकर आएगा। निश्चित रूप से इस बार गणतंत्र दिवस कार्यक्रम के उद्घोषक सिर्फ और सिर्फ आप होंगे। मेरा यह वादा महज शब्द जाल नहीं इस बात का यकीन आपको इस लेख को पूरा पढ़ते पढ़ते हो जाएगा। और हां, मैं सिर्फ आपकी हिम्मत को जगा कर आप को स्टेज पर ही खड़ा नहीं करूंगा बल्कि कार्यक्रम के प्रारंभ से लेकर कार्यक्रम के समापन तक आपका साथ दूंगा।        तो दोस्त सबसे पहला काम आपका यही रहेगा कि आप आज और अभी से आने वाले गणतंत्र दिवस के मंच संचालन की तैयारी शुरू कर दें। इस तैयारी के साथ साथ आप अपने मन में यह विश्वास जगाए कि निश्चित रूप से आप बहुत अच्छा मंच संचालन करेंगे। आने व