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दिसंबर, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पहली बार मंच संचालन : एक बेहतरीन शुरूआत

  हर कोई सीखता है दुनिया में आकर, यहां से कोई खाली हाथ नहीं जाता । हैं गलत हम ,तो बता दो कोई फन जो इंसान मां के पेट से सीख कर आता ।।         मेरे दोस्त! अगर आपने आज तक कभी मंच संचालन नहीं किया और आपके मन के किसी कोने में एक पुरानी इच्छा सोई हुई है कि काश मैं भी कभी मंच संचालन कर पाता ,,,,, तो यकीन मानिए कि आज इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आपके विद्यालय का इस बार का गणतंत्र दिवस आपके जीवन में उस दम तोड़ रही इच्छा को पूरा करने का स्वर्णिम अवसर लेकर आएगा। निश्चित रूप से इस बार गणतंत्र दिवस कार्यक्रम के उद्घोषक सिर्फ और सिर्फ आप होंगे। मेरा यह वादा महज शब्द जाल नहीं इस बात का यकीन आपको इस लेख को पूरा पढ़ते पढ़ते हो जाएगा। और हां, मैं सिर्फ आपकी हिम्मत को जगा कर आप को स्टेज पर ही खड़ा नहीं करूंगा बल्कि कार्यक्रम के प्रारंभ से लेकर कार्यक्रम के समापन तक आपका साथ दूंगा।        तो दोस्त सबसे पहला काम आपका यही रहेगा कि आप आज और अभी से आने वाले गणतंत्र दिवस के मंच संचालन की तैयारी शुरू कर दें। इस तैयारी के साथ साथ आप अपने मन में यह विश्वास जगाए कि निश्चित रूप से आप बहुत अच्छा मंच संचालन करेंगे। आने व

महापुरूषों की जयंती : सफल आयोजन कैसे करें

  शहीदों की मज़ारों पे लगेंगे हर वर्ष मैले। वतन पे मरने वालों का यही बाकी निशां होगा ।। नमस्कार दोस्तों!         जयंती आयोजन और विद्यालय का तो एक गहरा रिश्ता है विद्यालय में लगभग हर माह में किसी न किसी महापुरुष की जयंती का कार्यक्रम आयोजित होता ही रहता है। कभी गांधी जयंती, तो कभी नेहरू जयंती, कभी नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती, तो कभी अब्दुल कलाम जयंती,,,,, हर विद्यालय में जयंती कार्यक्रम को आयोजित के अपने अपने तरीके होते हैं। कहीं प्रार्थना सभा में महापुरुष के बारे में संक्षिप्त सी जानकारी देकर इतिश्री कर ली जाती है तो कहीं बाकायदा एक शानदार कार्यक्रम के रूप में जयंती का आयोजन किया जाता है।        खैर यह तो आपके विद्यालय की परिस्थितियों पर निर्भर करता है कि आप जयंती का आयोजन किस प्रकार करेंगे परंतु यदि हम किसी महापुरुष की जयंती को एक यादगार कार्यक्रम के रूप में आयोजित करना चाहते हैं तो उसकी एक अच्छी सी रूपरेखा क्या हो सकती है ? इस पर हम इस लेख के माध्यम से विचार करेंगे।        किसी अन्य कार्यक्रम के समान ही जयंती आयोजन के तीन भागीदार हो सकते हैं शिक्षक, विद्यार्थी और ग्रामवासी। तो सबसे

तरकश भाग 5 : प्रेरक प्रसंग

  साथियों! विद्यालय में शिक्षक और विद्यार्थी सबके लिए प्रेरक प्रसंग का बड़ा महत्व होता है। कभी-कभी तो प्रार्थना सभा/बाल सभा या अन्य आयोजन पर अनायास ही हमारे नाम की उद्घोषणा कर दी जाती है कि आप एक प्रेरक प्रसंग सुनायेंगे,,,,, तो ऐसे में हमारे तरकश में कोई ऐसा तीर होना ही चाहिए जो हमें वहाँ स्थापित कर सके। ऐसा ही एक प्रेरक प्रसंग जो मैने कहीं पढा/सुना है, उस अनाम लेखक को नमन करते हुए आपकी सेवा में पेश कर रहा हूँ। अपनी तुच्छता के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ। कबीर दास जी कहते हैं,,,, गुरु कुम्हार शिष कुम्भ है, घड़-घड़ काढै खोट। अंतरि हाथ स्नेह का, बाहिर मारे चोट।।       एक बार एक राहगीर जो एक प्रसिद्ध मूर्तिकार था कहीं पैदल ही जा रहा था। राह में थक जाने पर एक पेड़ की घनी छाया में बैठ गया। उसने देखा वहाँ दो पत्थर पड़े हैं। जो देखने में अनगढ और बेडोल थे परंतु मूर्तिकार जानता था कि पत्थर मूर्ति बनाने के लिए उत्तम हैं। कलाकार ‌कहां चैन से बैठने वाला होता है। सो उसने अपने थैले से निकाल लिए छैनी हथोड़ा और लगा पत्थर को तराशने।        पत्थर तो पहली ही चोट से बिलखने लगा मुझे छोड़ दो। मुझे छोड़ दो। मूर्ति

तरकश भाग 4 : कुल्ला करके आओ

  अब क्या मायने रखता है कि असल में कौन कैसा है। तुमने‌ जिसके लिए जो सोच बना ली वो बस,वैसा है।।         एक बार की बात है। हमारे साल्ट लेक डीडवाना में प्रादेशिक चींटी सम्मेलन का आयोजन हुआ। राजस्थान के कोने कोने से चींटियों के दल डीडवाना पधारे। डीडवाना की चींटियों ने उनकी खूब आवभगत की और उन्हें खाने में नमक परोसा। क्योंकि डीडवाना की चींटियां नमक की झील में रहने के कारण नमक ही खाती हैं और उन्हें‌ लगता है कि इस से स्वादिष्ट भोजन कुछ हो भी नहीं सकता । आगन्तुक चींटियों ने मेजबान चींटियों द्वारा की गई व्यवस्थाओं की प्रशंसा करते हुए उनके भोजन को भी अच्छा और स्वादिष्ट बताया।        अगली बार का आयोजन गंगानगर शुगर मिल के पास रखा गया। सो राजस्थान के कोने कोने से चीटियों के दल गंगानगर शुगर मिल के लिए रवाना हुए। डीडवाना का दल जब गंगानगर के लिए प्रस्थान करने लगा तो एक बुजुर्ग चिंटे ने कहा कि हमें रास्ते में खाने के लिए भोजन साथ ले चलना चाहिए। उनके पास तो भोजन के नाम पर वही नमक के टुकड़े थे। अब चीटियों के पास भोजन ले जाने के लिए कोई टिफिन बॉक्स तो होते नहीं है सो उन्होंने एक एक नमक का टुकड़ा अपने मुंह

तरकश भाग 3 : कछुआ और खरगोश

  वक्त की आंच में पत्थर भी पिघल जाते हैं, कहकहे टूटकर अश्कों में बह जाते हैं। उम्र भर कौन किसे याद रखता है मेरे दोस्त, वक्त के साथ तो ख्यालात भी बदल जाते हैं।।        मगर जो साथ देता है वही जीवन भर याद रहता है। तो दोस्तों एक था कछुआ और एक था खरगोश। दोनों में एक दिन होड़ लगी कि कौन तेज दौड़ता है। एक निश्चित स्थान से दौड़ शुरू कर बहुत दूर खड़े एक पेड़ के चक्कर लगाकर वापस आना था। जो पहले दौड़ पूरी करके आएगा वही जीतेगा। तो साहब खरगोश ने तो दौड़ शुरू होते ही छलांग भरनी शुरू की और वह बहुत आगे निकल गया दूसरी ओर बेचारा कछुआ रेंग रेंग कर थोड़ा सा ही चल पाया था। सो खरगोश ने सोचा इस तरह  ये कछुआ तो शाम तक भी पहुंचने से रहा मैं पहले दौड़ पूरी कर के क्या करूंगा। यही सोच कर खरगोश एक पेड़ की छाया में बैठ गया और बैठे-बैठे उसे नींद आ गई। नींद में वह अपनी जीत के सपने देखने लगा। दूसरी ओर कछुआ अपनी मंद गति से धीरे धीरे गंतव्य की ओर बढ़ता रहा। जब तक खरगोश की नींद खुली तब तक कछुआ दौड़ पूरी करके निर्धारित स्थान पर पहुंच चुका था।        खैर यहां तक की कहानी तो आप ने सुनी ही होगी। अब आगे की कहानी सुनिए,,, तो स

तरकश भाग 2 : कौए जैसे पंच

  नाकाबिल भी अब देखो यहाँ सिर उठाते हैं, काबिल महफिलों में दरी चादर बिछाते हैं। तेरे शहर में तो अर्थी को भी कांधा नहीं मिलता, मेरे‌ गाँव में लोग छप्पर भी मिलकर उठाते हैं। ।         तो साथियों एक था हंस और एक थी हंसिनी। मानसरोवर में बड़े प्रेम से रहते, मोती चुगते और हर पल आनंद क्रिड़ा में मग्न रहते। एक दिन हंसिनी के मन में दुनिया देखने का ख्याल मरोड़ मारने लगा। सो सवेरे उड़ चले हंस और हंसिनी,,,दुनिया देखने। कश्मीर की वादियां देखी, दिल्ली की भीड़ देखी, कच्छ का रन देखा विशाल समुद्र, ऊंचे पर्वत और न जाने क्या क्या देखा। और अन्त में देवयोग से आ पहुंचे मरूधरा के निर्जन‌ रेगिस्तान में । दूर दूर तक रेत के धोरे, तपती लू के थपेड़े। न छाया का कहीं नाम न पानी का कहीं निशान। मगर संध्या हो चुकी थी अतः हंस ने हंसिनी को समझाया कि जैसे तैसे यहाँ रात गुजार लेते हैं, प्रभात की पहली किरण के साथ ही हम मानसरोवर लौट चलेंगे।       सो रात बिताने को हंस और हंसिनी एक सूखे से बबूल के पेड़ के नीचे बैठ गये। और जैसे तैसे सवेरे का इंतजार करने लगे। मध्य रात्रि के समय एक उल्लू उस बबूल पर आकर बैठा और जोर-जोर से अपनी कर्

तरकश भाग 1 : मंच की शायरी

  उड़ूं अंबर में चिड़ियों सा चहक जाऊं, खिलूं गुल सा चमन में, खुशबू सा महक जाऊं । कुहासे सारे संशय के, मेरे मन से हटा देना मेरी मैया शारदे मां मुझे अपना बना लेना।। क्या लेकर आए हो, क्या लेकर जाना‌ है, हमें तो सांसो का कर्ज चुकाना है। बनाने वाले बनाते रहें कोठी बंगले, हमें तो दिलों में घर बनाना है। सितारों को आंखों में महफूज रख ले ए मुसाफिर, आगे रात ही रात होगी। तुम भी मुसाफिर, हम भी मुसाफिर, फिर किसी मोड़ पर मुलाकात होगी ।। टैंक आगे बढ़ें या पीछे हटें,  कोख धरती की बांझ होती है। फतह का जश्न हो या हार का शोक,  जिन्दगी मय्यतों पर रोती है। । पक्षी कहते हैं चमन बदल गया, तारे कहते हैं गगन बदल गया। मगर कहती है शमशान की खामोशी, लाश वही है सिर्फ कफन बदल गया ।। इस बस्ती से अलग, जमाने से जुदा कह दें, अजब कहें, अजीम कहें, अलहदा कह दें। आपकी रहनुमाई के किस्से इतने मकबूल हैं, कि हमारा बस चले तो आपको खुदा कहदें ।। मुश्किलें दिल के इरादे आजमाती हैं, स्वप्न के पर्दे निगाहों से हटाती हैं। हौसला मत हार गिरकर ओ मुसाफिर, ठोकरें इंसान को चलना सिखाती हैं।। मैं तो अकेला ही चला था मंजिल की ओर। राह में लोग जुड़

सफल वक्ता : आप भी हैं।

  किसी की अदा‌ तो किसी की मुस्कान ‌में जादू होता है, किसी के संगीत तो किसी के साज में ‌जादू होता है । मुसाफिर बंजारे भी सुनकर रूक जाते हैं अक्सर, जिनके दिल से निकली‌ आवाज में जादू होता है। ।         सच है दोस्तों! कभी-कभी कोई जब मंच पर आता है तो पहले से ही तालियां बजने लगती हैं। लोग मंत्रमुग्ध होकर बस,,,,सुनते ही रहते हैं। और कुछ ऐसे भी होते हैं कि उन्हें हम बस मजबूरी मानकर‌ सुन लेते हैं। पता है ऐसा क्यों होता है ? जबकि हर वक्ता चाहता है कि वो सबसे अच्छा बोले। मित्रों एक अच्छा वक्ता बनना दो मुख्य बातों पर निर्भर करता है- १. प्रतिभा, २. अभ्यास ।       इनमें से दूसरी बात अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि जहां प्रतिभा जन्मजात होती है वहीं अभ्यास के द्वारा प्रतिभा को अर्जित भी किया जा सकता है। एक बात और है कि अभ्यास करके कोई भी प्रतिभावान बन सकता है। तो दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है की अभ्यास वह रास्ता है जिस पर चलकर कोई भी एक अच्छा वक्ता बन सकता है।        अब सवाल यह है कि एक अच्छा वक्ता बनने के लिए हमें किस प्रकार का अभ्यास करना चाहिए। अगर आपको मंच पर बोलने का बिल्कुल भी अभ्यास नहीं है।

बालसभा : आनंद की एक फुहार

 "ना रोने की कोई वजह थी, ना हंसने का कोई बहाना था | क्यों हो गए हम इतने बड़े इससे अच्छा तो वो बचपन का जमाना था,,,,"         जी हां दोस्तों बाल सभा का नाम सुनते ही याद आ जाते हैं वे बचपन के जमाने जहां, हर शनिवार के अंतिम कुछ कालांश इतने आनंद में गुजरते कि हफ्ते भर की सारी गंभीरता, सारी थकान, सारी टेंशन बरबस ही गायब हो जाती।        कोरोना काल को छोड़कर बात करें तो पिछले कुछ वर्षो में राज्य सरकार और शिक्षा विभाग इस विषय पर बड़ा संजीदा दिखाई देता है। बालसभा को बाकायदा विशेष उत्सव के रूप में विद्यालय में/ सार्वजनिक स्थान पर/ गांव के चौपाल पर मनाए जाने के आदेश भी निदेशालय स्तर से प्रसारित किए गए। जिनकी सक्षम अधिकारियों से मॉनिटरिंग भी करवाई गई।        अब किसी ने इसका आयोजन मजबूरी मानकर महज खानापूर्ति के रूप में किया तो किसी ने एक अवसर मानकर बालसभा के इस उत्सव को महोत्सव में बदल दिया।        तो आइए हम उन बातों पर विचार करें जिससे आपके विद्यालय की अगली बालसभा भी महोत्सव बन जाए और अगले दिन लोग आपकी मेहनत की तारीफ करते नजर आएं।        ∆  सबसे महत्वपूर्ण बात बालसभा की तैयारियां इस बात प

प्रवेशोत्सव : कैसे करें भव्य आयोजन

"खुद ही को कर बुलंद इतना कि हर तदबीर से पहले,     खुदा खुद बंदे से पूछे बता तेरी रजा क्या है ||"    अगर आप एक शिक्षक हैं या संस्था प्रधान हैं तो प्रवेश उत्सव आपके लिए सबसे महत्वपूर्ण आयोजन है। क्योंकि यह पहला आयोजन होगा जिससे हम अपने नवीन शिक्षा सत्र का शुभारंभ करने जा रहे हैं। इसे महज कागजी ना बनाकर थोड़ी सी मेहनत और हौसले के साथ आयोजित कर लें तो विद्यालय की तरफ से समाज में एक बहुत अच्छा मैसेज जा सकता है कहा भी जाता है-  Well begun is half done          तो आइए हम जाने कि प्रवेश उत्सव का बेहतर आयोजन कैसे हो। हालांकि प्रवेश उत्सव करीब महीने भर चलने वाली एक प्रक्रिया है परंतु एक भव्य आयोजन के लिए सबसे पहले हमें एक दिन निर्धारित करना है जिस दिन हम इस आयोजन को सर्वश्रेष्ठ रूप देने वाले हैं। यह दिन प्रवेशोत्सव की अंतिम तिथि से कुछ पहले हो तो बेहतर रहेगा। दिन तय होने के बाद आप विद्यालय प्रबंध समिति के सदस्यों, विद्यालय के आस पड़ोस या गांव के जनप्रतिनिधियों, गणमान्य नागरिकों, अभिभावकों आदि को निमंत्रित करें। मल्टीमीडिया जैसे व्हाट्सएप, फेसबुक, टि्वटर आदि के द्वारा इस दिन का अधिकाधिक