शहीदों की मज़ारों पे लगेंगे हर वर्ष मैले।
वतन पे मरने वालों का यही बाकी निशां होगा ।।
नमस्कार दोस्तों!
जयंती आयोजन और विद्यालय का तो एक गहरा रिश्ता है विद्यालय में लगभग हर माह में किसी न किसी महापुरुष की जयंती का कार्यक्रम आयोजित होता ही रहता है। कभी गांधी जयंती, तो कभी नेहरू जयंती, कभी नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती, तो कभी अब्दुल कलाम जयंती,,,,, हर विद्यालय में जयंती कार्यक्रम को आयोजित के अपने अपने तरीके होते हैं। कहीं प्रार्थना सभा में महापुरुष के बारे में संक्षिप्त सी जानकारी देकर इतिश्री कर ली जाती है तो कहीं बाकायदा एक शानदार कार्यक्रम के रूप में जयंती का आयोजन किया जाता है।
खैर यह तो आपके विद्यालय की परिस्थितियों पर निर्भर करता है कि आप जयंती का आयोजन किस प्रकार करेंगे परंतु यदि हम किसी महापुरुष की जयंती को एक यादगार कार्यक्रम के रूप में आयोजित करना चाहते हैं तो उसकी एक अच्छी सी रूपरेखा क्या हो सकती है ? इस पर हम इस लेख के माध्यम से विचार करेंगे।
किसी अन्य कार्यक्रम के समान ही जयंती आयोजन के तीन भागीदार हो सकते हैं शिक्षक, विद्यार्थी और ग्रामवासी। तो सबसे पहले आपको विचार इस बात पर करना है कि हम इस कार्यक्रम को कितने बड़े स्तर तक आयोजित करना चाहते हैं। अगर कार्यक्रम में ग्राम वासियों को शामिल करने जा रहे हैं तो निश्चित रूप से आप की व्यवस्थाएं कार्यक्रम की तैयारियां सभी कुछ उसी के अनुरूप होनी ही चाहिए। परंतु अक्सर हम लोग जयंती आदि कार्यक्रम को छोटे स्तर पर ही आयोजित करना चाहते हैं जिसमें विद्यालय परिवार ही भागीदार होता है। बहुधा देखने में आता है कि इस प्रकार के कार्यक्रमों में समस्त तामझाम के बाद भी विद्यार्थियों की भागीदारी नगण्य रहती है। अब आप ही सोचिए कि विद्यालय में इस प्रकार की जयंती आदि कार्यक्रमों के आयोजन का मूल उद्देश्य क्या हो सकता है? जहां तक मैं समझता हूं इसके दो मूल उद्देश्य होते हैं पहला विद्यार्थी उस महान विभूति के जीवन से कुछ प्रेरणा ग्रहण कर सकें। और दूसरा उद्देश्य होता है विद्यार्थियों को इस प्रकार का छोटा मंच उपलब्ध करवाना जहां वे अपनी प्रतिभा को प्रकट करने का मौका पा सकें। जब हम सारी माकूल व्यवस्थाओं के बावजूद विद्यार्थियों को उस मंच तक नहीं ला सके तो हमारा दूसरा उद्देश्य पूरा नहीं हो पाता है। साथियों यदि आप भी विद्यार्थी हैं तो मैं आपको यही कहना चाहूंगा की जयंती आयोजन जैसे छोटे मौकों को अपने हाथों से जाने नहीं दें। ऐसे मौकों पर उस महापुरुष के जीवन से जुड़ा हुआ कोई छोटा सा प्रसंग या छोटा सा संस्मरण, उनके कहे हुए प्रेरक कथन इत्यादि कुछ ना कुछ अवश्य बोलें क्योंकि यही वे मौके हैं जो आगे चलकर जीवन में आपको किसी भी बड़े मंच पर बोलने में सक्षम बनाएंगे याद रखें एक-एक पायदान पर चढ़कर ही छत पर पहुंचा जाता है, ठीक वैसे ही छोटे-छोटे आयोजनों में बोलकर ही अच्छा वक्ता बना जा सकता है। यदि आप शिक्षक हैं तो ऐसे में आपकी जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है आपको सदैव अपने विद्यार्थियों को इस प्रकार प्रोत्साहित करना चाहिए कि वे ऐसे मौकों पर कुछ ना कुछ आवश्यक बोलें। विद्यार्थी अधिकतर संकोची स्वभाव के होते हैं उन्हें इस बात का भी संकोच होता है कि मैं क्या बोलूंगा ? मैं ठीक से बोल पाऊंगा या नहीं बोल पाऊंगा ? तो ऐसे में एक शिक्षक होने के नाते आप का यह फर्ज बनता है कि आप उन्हें इस प्रकार का मार्गदर्शन दें कि वे अपने संकोच पर विजय पा सकें।
जयंती आयोजन हेतु पूर्व तैयारियाँ :----
अक्सर कयी बार पूर्व तैयारी के अभाव में इस प्रकार के कार्यक्रमों का प्रभावी आयोजन नहीं हो पाता है। अतः हमें इस प्रकार की परिस्थितियों से बचने के लिए आवश्यक पूर्व तैयारियाँ कर लेनी चाहिए। अब हम इस बात पर विचार करें कि हमें कौन- कौनसी पूर्व तैयारियाँ करनी आवश्यक है?
१. सूचना संबंधी तैयारी -- संस्था प्रधान/ उत्सव प्रभारी को एक बार सम्पूर्ण शिविरा पंचाग देखकर इस प्रकार की तिथियों को नोट करके रखना चाहिए ताकि समय से पूर्व हम अपने आयोजन की रूपरेखा बना सकें। किसी भी जयंती आदि उत्सव के कुछ दिन पूर्व से ही इसकी सूचना विद्यार्थियों को प्रार्थना सभा/ नोटिस बोर्ड के माध्यम से बार - बार दी जानी चाहिए। यदि अभिभावकों या ग्रामवासियों कार्यक्रम में सम्मिलित करना हो तो उन्हें भी यथा समय और यथा योग्य सूचना / आमंत्रण देना चाहिए।
२. विद्यार्थियों को तैयार करना --- विद्यालय का कोई भी आयोजन चूंकि विद्यार्थियों के लिए ही होता है। अतः वे कार्यक्रम में बढ़ चढ़कर भाग लें इस प्रकार का प्रयास ही हमारी सार्थकता होगी। तो ऐसे किसी कार्यक्रम से कुछ दिन पूर्व से ही जो विद्यार्थी मंच पर आगे आ सकें उनका चयन करते रहना चाहिए। विद्यार्थियों को बार बार उत्साहित करना चाहिए ताकि वे आगे आएं। साथ ही उनका मार्गदर्शन करना चाहिए कि वे क्या बोलें। जैसे किसी महापुरुष की जयंती पर माध्यमिक/उच्च माध्यमिक कक्षाओं के विद्यार्थियों को उनके जीवन / शिक्षा-दीक्षा / व्यक्तित्व / कृतित्व आदि पर बोलने के लिए कहना चाहिए वहीं उच्च प्राथमिक स्तर के विद्यार्थियों को महापुरुष के जीवन के कोई प्रसंग आदि बोलने हेतु प्रोत्साहित किया जाना चाहिए । प्राथमिक कक्षाओं के विद्यार्थियों को महापुरुष द्वारा कहे गये प्रेरक कथन बोलने हेतु तैयार किया जा सकता है। छोटे विद्यार्थियों को इस प्रकार की सामग्री लिखकर देनी चाहिए बड़े विद्यार्थी आपके मार्गदर्शन मात्र से स्वयं भी तैयार कर सकते हैं। विद्यालय के हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दू आदि भाषा शिक्षकों से अलग अलग भाषाओं में लिखवाकर भी विद्यार्थियों को दिया जा सकता है।
३. आयोजन संबंधी तैयारियाँ --- आयोजन के उपयुक्त स्थान का चुनाव करें। बैठक व्यवस्था पर विचार करें । माईक सेट आदि (आवश्यकता/उपलब्धता के आधार पर) उपकरण । संबंधित महापुरुष का चित्र । मालाएं/ फूल आदि। वक्ताओं की सूची।
इन सबके पश्चात एक महत्वपूर्ण तैयारी होती है मंच संचालक की। उसे चाहिए कि वो संबंधित महापुरुष के बारे में अच्छी जानकारी हासिल कर लें और अपना शेर-शायरी/ प्रसंग आदि का तरकश अच्छे से तैयार कर लें। क्योंकि समस्त तैयारियों के पश्चात भी मंच संचालक ही किसी आयोजन को सफलता की ओर ले जाता है।
जब तू आया, जग हंसा तू रोया था ।
बसर कर जिन्दगी ऐसी,,,,
जग रोये तू हंसता जा ।।
(आशा करता हूँ आपका अगला आयोजन और अधिक प्रभावी होगा। इस हेतु आपको अग्रिम शुभकामनाएं । लेख कैसा लगा कमेंट बॉक्स में अपने विचार अवश्य प्रकट करें। )
आपका स्नेहाकांक्षी-
सांवर चौधरी
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
आपके संबल हेतु हार्दिक धन्यवाद।